कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया
जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया
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बे-पर्दा नज़र आईं जो कल चंद बीबियाँ
पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए
दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी