वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
बर्फ़ की तरह मुसलमान घुले जाते हैं
दाग़ अब उन की नज़र में हैं शराफ़त के निशाँ
नई तहज़ीब की मौजों से धुले जाते हैं
इल्म ने रस्म ने मज़हब ने जो की थी बंदिश
टूटी जाती है वो सब बंद खुले जाते हैं
शैख़ को वज्द में लाई हैं पियानों की गतें
पेच दस्तार-ए-फ़ज़ीलत के खुले जाते हैं
(1040) Peoples Rate This