न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते

न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते

सदफ़ में रहते ये मोती तो बे-बहा होते

मुझ ऐसे रिंद से रखते ज़रूर ही उल्फ़त

जनाब-ए-शैख़ अगर आशिक़-ए-ख़ुदा होते

गुनाहगारों ने देखा जमाल-ए-रहमत को

कहाँ नसीब ये होता जो बे-ख़ता होते

जनाब-ए-हज़रत-ए-नासेह का वाह क्या कहना

जो एक बात न होती तो औलिया होते

मज़ाक़-ए-इश्क़ नहीं शेख़ में ये है अफ़्सोस

ये चाशनी भी जो होती तो क्या से क्या होते

महल्ल-ए-शुक्र हैं 'अकबर' ये दरफ़शाँ नज़्में

हर इक ज़बाँ को ये मोती नहीं अता होते

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Na Bahte Ashk To Tasir Mein Siwa Hote In Hindi By Famous Poet Akbar Allahabadi. Na Bahte Ashk To Tasir Mein Siwa Hote is written by Akbar Allahabadi. Complete Poem Na Bahte Ashk To Tasir Mein Siwa Hote in Hindi by Akbar Allahabadi. Download free Na Bahte Ashk To Tasir Mein Siwa Hote Poem for Youth in PDF. Na Bahte Ashk To Tasir Mein Siwa Hote is a Poem on Inspiration for young students. Share Na Bahte Ashk To Tasir Mein Siwa Hote with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.