मिल गया शरअ से शराब का रंग
मिल गया शरअ से शराब का रंग
ख़ूब बदला ग़रज़ जनाब का रंग
चल दिए शैख़ सुब्ह से पहले
उड़ चला था ज़रा ख़िज़ाब का रंग
पाई है तुम ने चाँद सी सूरत
आसमानी रहे नक़ाब का रंग
सुब्ह को आप हैं गुलाब का फूल
दोपहर को है आफ़्ताब का रंग
लाख जानें निसार हैं इस पर
दीदनी है तिरे शबाब का रंग
टिकटिकी बंध गई है बूढ़ों की
दीदनी है तिरे शबाब का रंग
जोश आता है होश जाता है
दीदनी है तिरे शबाब का रंग
रिंद-ए-आली-मक़ाम है 'अकबर'
बू है तक़्वा की और शराब का रंग
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