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मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है - अकबर इलाहाबादी कविता - Darsaal

मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है

मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है

नेचर भी सबक़ सीख ले ज़ीनत है तो ये है

कमरे में जो हँसती हुई आई मिस-ए-राना

टीचर ने कहा इल्म की आफ़त है तो ये है

ये बात तो अच्छी है कि उल्फ़त हो मिसों से

हूर उन को समझते हैं क़यामत है तो ये है

पेचीदा मसाइल के लिए जाते हैं इंग्लैण्ड

ज़ुल्फ़ों में उलझ आते हैं शामत है तो ये है

पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से

साहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है

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