Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_3d10dbd211aa34432ae5cf26b52b1f64, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के - अकबर इलाहाबादी कविता - Darsaal

हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के

हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के

हाँ ऐ निगाह-ए-शौक़ ज़रा देख-भाल के

पहुँचे हैं ता-कमर जो तिरे गेसू-ए-रसा

मा'नी ये हैं कमर भी बराबर है बाल के

बोस-ओ-कनार-ओ-वस्ल-ए-हसीनाँ है ख़ूब शग़्ल

कमतर बुज़ुर्ग होंगे ख़िलाफ़ इस ख़याल के

क़ामत से तेरे साने-ए-क़ुदरत ने ऐ हसीं

दिखला दिया है हश्र को साँचे में ढाल के

शान-ए-दिमाग़ इश्क़ के जल्वे से ये बढ़ी

रखता है होश भी क़दम अपने सँभाल के

ज़ीनत मुक़द्दमा है मुसीबत का दहर में

सब शम्अ' को जलाते हैं साँचे में ढाल के

हस्ती के हक़ के सामने क्या अस्ल-ए-ईन-ओ-आँ

पुतले ये सब हैं आप के वहम-ओ-ख़याल के

तलवार ले के उठता है हर तालिब-ए-फ़रोग़

दौर-ए-फ़लक में हैं ये इशारे हिलाल के

पेचीदा ज़िंदगी के करो तुम मुक़द्दमे

दिखला ही देगी मौत नतीजा निकाल के

(1087) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Halqe Nahin Hain Zulf Ke Halqe Hain Jal Ke In Hindi By Famous Poet Akbar Allahabadi. Halqe Nahin Hain Zulf Ke Halqe Hain Jal Ke is written by Akbar Allahabadi. Complete Poem Halqe Nahin Hain Zulf Ke Halqe Hain Jal Ke in Hindi by Akbar Allahabadi. Download free Halqe Nahin Hain Zulf Ke Halqe Hain Jal Ke Poem for Youth in PDF. Halqe Nahin Hain Zulf Ke Halqe Hain Jal Ke is a Poem on Inspiration for young students. Share Halqe Nahin Hain Zulf Ke Halqe Hain Jal Ke with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.