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तेरा ख़याल जाँ के बराबर लगा मुझे - अकबर अली खान अर्शी जादह कविता - Darsaal

तेरा ख़याल जाँ के बराबर लगा मुझे

तेरा ख़याल जाँ के बराबर लगा मुझे

तू मेरी ज़िंदगी है ये अक्सर लगा मुझे

दरिया तिरे जमाल के हैं कितने इस में गुम

सोचा तो अपना दिल भी समुंदर लगा मुझे

लूटा जो उस ने मुझ को तो आबाद भी किया

इक शख़्स रहज़नी में भी रहबर लगा मुझे

क्या बात थी कि क़िस्सा-ए-फ़रहाद-ए-कोहकन

अपनी ही दास्तान-ए-सरासर लगा मुझे

आमद ने तेरी कर दिया आबाद इस तरह

ख़ुद अपना पहली बार मिरा घर लगा मुझे

आया है कौन मेरी अयादत के वास्ते

क्यूँ अपना हाल पहले से बेहतर लगा मुझे

क्या याद आ गया मुझे क्यूँ याद आ गया

ग़ुंचा खिला जो शाख़ पे पत्थर लगा मुझे

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