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सज़ा है किस के लिए और जज़ा है किस के लिए - अकबर अली खान अर्शी जादह कविता - Darsaal

सज़ा है किस के लिए और जज़ा है किस के लिए

सज़ा है किस के लिए और जज़ा है किस के लिए

पता नहीं दर-ए-ज़िंदाँ खुला है किस के लिए

सुराही-ए-मय-ए-नाब-ओ-सफीना-हा-ए-ग़ज़ल

ये हर्फ़-ए-हुस्न-ए-मुक़द्दर लिखा है किस के लिए

फ़क़त शुनीद है अब तक जो दीद हो तो बताएँ

बहार-ए-सब्ज़ा-ओ-रक़्स-ए-सबा है किस के लिए

नहीं जो अपने लिए बावजूद ज़ौक़-ए-नज़र

सहीफ़ा-ए-रुख़-ओ-रंग-ए-हिना है किस के लिए

मिटा सके न अगर तिश्ना-कामियाँ मेरी

कहो कि ख़ूबी-ए-आब-ओ-हवा है किस के लिए

तुम्हें नहीं हो अगर आज गोश-बर-आवाज़

ये मेरी फ़िक्र ये मेरी नवा है किस के लिए

ये इक सवाल है शिकवा नहीं गिला भी नहीं

मिरे ख़ुदा तिरा लुत्फ़-ओ-अता है किस के लिए

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