हुस्न ही के दम से हैं ये कहानियाँ सारी
हुस्न ही के दम से हैं ये कहानियाँ सारी
इश्क़ ही सिखाता है ख़ुश-बयानियाँ सारी
ख़्वाब और ख़ुशबू को चाहतों के जादू को
क़ैद कर के दिखलाएँ पासबानियाँ सारी
दिल की धड़कनों पर है इंहिसार-ए-अफ़्साना
एक सी नहीं होतीं नौजवानियाँ सारी
इक तबस्सुम-ए-पिन्हाँ इक निगाह-ए-दुज़्दीदा
और फिर कहानी थीं सर-गिरानियाँ सारी
याद बन के पहलू में मौसमों के बिस्तर पर
करवटें बदलती हैं मेहरबानियाँ सारी
क्या गिनाएँ अब तुम को हाँ सजा के रक्खी हैं
हम ने गोशे गोशे में वो निशानियाँ सारी
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