ज़िंदगी हम से चाहती क्या है
चाहती क्या है ज़िंदगी हम से
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किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी
और तो ख़ैर क्या रह गया
दीवार याद आ गई दर याद आ गया
'अजमल'-सिराज हम उसे भूल हुए तो हैं
बुझ गया रात वो सितारा भी
बताओ तुम से कहाँ राब्ता किया जाए
नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम
मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है
बदल जाएँगे ये दिन रात 'अजमल'
मिरी मिसाल तो ऐसी है जैसे ख़्वाब कोई
घूम-फिर कर इसी कूचे की तरफ़ आएँगे