कौन आता है इस ख़राबे में
इस ख़राबे में कौन आता है
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किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
और तो ख़ैर क्या रह गया
गुज़र गई है अभी साअत-ए-गुज़िश्ता भी
दिखा दूँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
मिरी मिसाल तो ऐसी है जैसे ख़्वाब कोई
ठहर गया है दिल का जाना
उस ने पूछा था क्या हाल है
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
जो अश्क बरसा रहे हैं साहिब
ये उदासी का सबब पूछने वाले 'अजमल'
तेरे सिवा किसी की तमन्ना करूँगा मैं
ये भी तय है कि जो बोएँगे वो काटेंगे यहाँ