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सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की - अजमल सिराज कविता - Darsaal

सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की

सुनी है चाप बहुत वक़्त के गुज़रने की

मगर ये ज़ख़्म कि हसरत है जिस के भरने की

हमारे सर पे तो ये आसमान टूट पड़ा

घड़ी जब आई सितारों से माँग भरने की

गिरह में दाम तो रखते हैं ज़हर खाने को

ये और बात कि फ़ुर्सत नहीं है मरने की

बहुत मलाल है तुझ को न देख पाने का

बहुत ख़ुशी है तिरी राह से गुज़रने की

बताओ तुम से कहाँ राब्ता किया जाए

कभी जो तुम से ज़रूरत हो बात करने की

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