सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से
सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से
पेच-दर-पेच वो ख़ामोश धुआँ मैं ही था
सच का ज़हर गवारा न किसी को भी हुआ
तल्ख़ी-ए-ज़ाएक़ा-ए-काम-ओ-ज़बाँ मैं ही था
ख़ुद ही प्यासा था भला प्यास बुझाता किस की
सर पे सूरज को लिए अब्र-ए-रवाँ मैं ही था
दर पे इक क़ुफ़्ल पुर असरार पड़ा था 'अजमल'
भेद खुलता भी तो कैसे कि मकाँ मैं ही था
(2914) Peoples Rate This