'अजमल' न आप सा भी कोई सख़्त-जाँ मिला
देखें हैं हम ने यूँ तो सितम-आश्ना बहुत
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रास्ते के पेच-ओ-ख़म क्या शय हैं सोचा ही नहीं
आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है
आरज़ू थी खींचते हम भी कोई अक्स-ए-हयात
वक़्त-ए-सफ़र क़रीब है बिस्तर समेट लूँ
हर उजाला नई सहर तो नहीं
याद-ए-फ़िराक-ए-यार तिरा शुक्रिया बहुत
जब भी मिलता हूँ वही चेहरा लिए
दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना
तार-ए-नज़र भी ग़म की तमाज़त से ख़ुश्क है
तिरी नज़र भी नहीं हर्फ़-ए-मुद्दआ भी नहीं
ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम
फ़िरऔन-ए-वक़्त कोई भी हो सर-कशी करो