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वो हर्फ़ हर्फ़ मुकम्मल किताब कर देगा - अजीत सिंह हसरत कविता - Darsaal

वो हर्फ़ हर्फ़ मुकम्मल किताब कर देगा

वो हर्फ़ हर्फ़ मुकम्मल किताब कर देगा

वरक़ वरक़ को मोहब्बत का बाब कर देगा

उजाले के लिए उस को सदा लगाओ अब

ये काम चुटकियों में आफ़्ताब कर देगा

वो जब भी देखेगा मस्ती भरी नज़र से मुझे

मिरे वजूद को यकसर शराब कर देगा

मुझे यक़ीन है एजाज़-ए-लम्स से इक दिन

वो ख़ार को भी शगुफ़्ता गुलाब कर देगा

हज़ार चुप सही पर उस का बोलता चेहरा

ख़मोश रह के हमें ला-जवाब कर देगा

वो जैसा चाहेगा वैसा करेगा ऐ 'हसरत'

किसी को ठीक किसी को ख़राब कर देगा

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