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भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले - अजय सहाब कविता - Darsaal

भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले

भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले

तू कहाँ है मिरी आँखों को भिगोने वाले

हम किसी ग़ैर के हो जाएँ ये मुमकिन ही नहीं

और तुम तो कभी अपने नहीं होने वाले

सोचते हैं कि कहाँ जा के तलाशें उन को

हम को कुछ दोस्त मिले थे कभी खोने वाले

रेत के जैसा है अब तो ये मुक़द्दर मेरा

ख़ुद बिखर जाएँगे अब मुझ को पिरोने वाले

दर्द और अश्क ज़माने में अज़ल से हैं वही

सिर्फ़ बदले हैं हर इक दौर में रोने वाले

पेड़ को अपना ही साया नहीं मिलता लोगो

फ़स्ल अपनी कभी पाते नहीं बोने वाले

दर्द ग़ैरों का भला कौन उठाता है 'सहाब'

सब यहाँ ख़ुद की सलीबों को हैं ढोने वाले

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