ये जो फूलों से भरा शहर हुआ करता था
उस के मंज़र हैं दिल-आज़ार कहीं और चलें
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अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
वो पहली जैसी वहशतें वो हाल ही नहीं रहा
फ़त्ह का ग़म
तर्क-ए-तअल्लुक़ कर तो चुके हैं इक इम्कान अभी बाक़ी है
कभी तू ने ख़ुद भी सोचा कि ये प्यास है तो क्यूँ है
कष्ट
मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
मुहताज हम-सफ़र की मसाफ़त न थी मिरी
कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी