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कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी - ऐतबार साजिद कविता - Darsaal

कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी

कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी

कहा मख़्लूक़ बोले बाइस-ए-आज़ार तो होगी

कहा: हम क्या करें इस अहद-ए-ना-पुरसाँ में कुछ कहिए

वो बोले कोई आख़िर सूरत-ए-इज़हार तो होगी

कहा: हम अपनी मर्ज़ी से सफ़र भी कर नहीं सकते

वो बोले हर क़दम पर इक नई दीवार तो होगी

कहा: आँखें नहीं इस ग़म में बीनाई भी जाती है

वो बोले हिज्र की शब है ज़रा दुश्वार तो होगी

कहा: जलता है दिल बोले इसे जलने दिया जाए

अँधेरे में किसी को रौशनी दरकार तो होगी

कहा: ये कूचा-गर्दी और कितनी देर तक आख़िर

वो बोले इश्क़ में मिट्टी तुम्हारी ख़्वार तो होगी

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