ऐतबार साजिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ऐतबार साजिद
नाम | ऐतबार साजिद |
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अंग्रेज़ी नाम | Aitbar Sajid |
जन्म की तारीख | 1948 |
जन्म स्थान | Islamabad |
ये जो फूलों से भरा शहर हुआ करता था
ये बरसों का तअल्लुक़ तोड़ देना चाहते हैं हम
तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
तअल्लुक़ात में गहराइयाँ तो अच्छी हैं
तअल्लुक़ किर्चियों की शक्ल में बिखरा तो है फिर भी
रिहा कर दे क़फ़स की क़ैद से घायल परिंदे को
रस्ते का इंतिख़ाब ज़रूरी सा हो गया
फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे
फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
पहले ग़म-ए-फ़ुर्क़त के ये तेवर तो नहीं थे
मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मेरी पोशाक तो पहचान नहीं है मेरी
मकीनों के तअल्लुक़ ही से याद आती है हर बस्ती
मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूँ
किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए
किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद'
जुदाइयों की ख़लिश उस ने भी न ज़ाहिर की
जो मिरी शबों के चराग़ थे जो मिरी उमीद के बाग़ थे
जिस को हम ने चाहा था वो कहीं नहीं इस मंज़र में
इतना पसपा न हो दीवार से लग जाएगा
हम तिरे ख़्वाबों की जन्नत से निकल कर आ गए
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
ग़ज़ल फ़ज़ा भी ढूँडती है अपने ख़ास रंग की
दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें
बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
अजब नशा है तिरे क़ुर्ब में कि जी चाहे