सीने में इक खटक सी है और बस
हम नहीं जानते कि क्या है दिल
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मैं बुरा ही सही भला न सही
न छोड़ी ग़म ने मिरे इक जिगर में ख़ून की बूँद
शोर अब आलम में है उस शोबदा-पर्दाज़ का
फूल अल्लाह ने बनाए हैं महकने के लिए
जो होता आह तिरी आह-ए-बे-असर में असर
जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है वो ख़ुद-काम भी है
मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं
तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे
कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम
अगर अपना कहा तुम आप ही समझे तो क्या समझे
फिरा किसी का इलाही किसी से यार न हो