मुझी में जीता है सूरज तमाम होने तक

मुझी में जीता है सूरज तमाम होने तक

मैं अपने जिस्म में आता हूँ शाम होने तक

ख़बर मिली है मुझे आज अपने होने की

कहीं ये झूट न हो जाए आम होने तक

कहाँ ये जुरअत-ए-इज़हार थी किसी शय में

सुकूत-ए-शब से मिरे हम-कलाम होने तक

ये पुख़्तगी थी ग़मों में न धड़कनों में सबात

तुम्हारे दर्द का दिल में क़याम होने तक

ये चाँद तारे मिरी दस्तरस से दूर नहीं

कि फ़ासले हैं मिरे तेज़-गाम होने तक

गुज़र रहे हैं नज़र से नज़र मिलाए बग़ैर

ठहर भी जाइए एक एक जाम होने तक

दिए बुझा दिए जाते हैं सुब्ह तक 'आज़िम'

मिरा हवाला दिया उस ने नाम होने तक

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Mujhi Mein Jita Hai Suraj Tamam Hone Tak In Hindi By Famous Poet Ainuddin Azim. Mujhi Mein Jita Hai Suraj Tamam Hone Tak is written by Ainuddin Azim. Complete Poem Mujhi Mein Jita Hai Suraj Tamam Hone Tak in Hindi by Ainuddin Azim. Download free Mujhi Mein Jita Hai Suraj Tamam Hone Tak Poem for Youth in PDF. Mujhi Mein Jita Hai Suraj Tamam Hone Tak is a Poem on Inspiration for young students. Share Mujhi Mein Jita Hai Suraj Tamam Hone Tak with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.