Ghazals of Ainuddin Azim

Ghazals of Ainuddin Azim
नामऐनुद्दीन आज़िम
अंग्रेज़ी नामAinuddin Azim

ज़ेहन पर जब दर्द ख़ामोशी की चादर तानता है

यही इक जिस्म-ए-फ़ानी जावेदानी का अहाता करने वाला है

वहशत में दिल कितना कुशादा करना पड़ता है

तुम्हारे बिन अब के जान-ए-जाँ मैं ने ईद करने की ठान ली है

तही-दामन बरहना-पा रवाना हो गया हूँ

सुर्ख़-रू सब को सर-ए-मक़्तल नज़र आने लगे

सताइश न कीजिए तबर्रा सही

पाँव फँसे में हाथ छुड़ाने आया था

पढ़ो इबारत-ए-तख़्लीक़-ए-दर्द चेहरे पर

मुझी में जीता है सूरज तमाम होने तक

मेरे हमराह सितारे कभी जुगनू निकले

मैं ने जब हद से गुज़रने का इरादा कर लिया

ला-मकाँ से भी परे ख़ुद से मुलाक़ात करें

क्या करूँ ज़र्फ़-ए-शनासाई को

कारोबारी शहरों में ज़ेहन-ओ-दिल मशीनें हैं जिस्म कारख़ाना है

जो मैं ने कह दिया उस से मुकरने वाला नहीं

दर्द तेरा मिरे सीने से निकाला न गया

अब जुनूँ के रत-जगे ख़िरद में आ गए

आवाज़ के सौदागरों में इतनी फ़नकारी तो है

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