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गुज़रते वक़्त को बुनियाद करने वाला हूँ - ऐन ताबिश कविता - Darsaal

गुज़रते वक़्त को बुनियाद करने वाला हूँ

गुज़रते वक़्त को बुनियाद करने वाला हूँ

जो सब भुलाते हैं वो याद करने वाला हूँ

मैं वो नहीं हूँ कि फ़रियाद करने वाला हूँ

सुकूत को सुख़न-ईजाद करने वाला हूँ

अँधेरी रात और उस पर मिरे चराग़ का ज़ोम

उजड़ती बज़्म को आबाद करने वाला हूँ

मैं अपना कार-ए-वफ़ा आज़माऊँगा फिर भी

कहाँ मैं तेरे सितम याद करने वाला हूँ

मैं अंदलीब हूँ इक गुलशन-ए-मोहब्बत का

सो मैं भी कुछ मिरे सय्याद करने वाला हूँ

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