न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए
न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए
सितारा-ए-सहरी हूँ मैं ज़िंदगी के लिए
ये कौन वक़्त की सूरत मुझे बदलता है
ये क्या किसी के लिए कुछ हूँ कुछ किसी के लिए
सराब-ए-ख़्वाब की ताबीर जू-ए-आब सही
मैं सोचता हूँ मगर दश्त-ए-तिश्नगी के लिए
वो मुतमइन हूँ गुमाँ को यक़ीं समझता हूँ
यक़ीं कि ख़ुद नहीं कुछ कम जो गुमरही के लिए
कहीं वो मेरी तरह मेरा आश्ना ही न हो
हज़ार ख़्वाब बुनूँ मैं जिस अजनबी के लिए
वो आसमाँ हो कि सहरा वजूद हो कि अदम
फ़ज़ा बनी है ये किस शरह-ए-ख़ामुशी के लिए
(913) Peoples Rate This