कभी सोचूँ कि ख़ुद मैं लौट आऊँ
कभी सोचूँ कि ऐसा क्यूँ करूँ मैं
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हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं
रात इक हादसा हुआ मुझ में
कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है
ग़र्क़ होते जहाज़ देखे हैं
जहाँ तक डूबने का डर है तुम को
बला की धूप थी मैं जल रहा था
तन्हा तन्हा सहमी सहमी ख़ामोशी
बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम
बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई
क्या किसी बात की सज़ा है मुझे
ख़ुद अपने साथ धोका क्यूँ करूँ मैं