हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं
मेरे लिए हयात कोई मसअला नहीं
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क़ल्ब की बंजर ज़मीं पर ख़्वाहिशें बोते हुए
बस एक धुन थी समुंदर को पार करने की
तिश्नगी पीने की शब थी
क्या किसी बात की सज़ा है मुझे
ख़ुद अपने साथ धोका क्यूँ करूँ मैं
कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है
मेरी तरफ़ सभी कि निगाहें थीं और मैं
धुँद है या धुआँ समझता हूँ
रात-भर रोने का दिन था
जहाँ तक डूबने का डर है तुम को
बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम