इक साया मेरे जैसा है
इक साया मेरे जैसा है
जो मेरा पीछा करता है
अब शोर से आजिज़ सन्नाटा
कानों में बातें करता है
इक मोड़ है रस्ते के आगे
उस मोड़ के आगे रस्ता है
मैं एक ठिकाना ढूँडता हूँ
जो सहरा है न ही दरिया है
इक ख़्वाब की वहशत है जिस में
ख़ुद को ही मरते देखा है
ये क़िस्सा झूट सही लेकिन
सुनने में अच्छा लगता है
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