सब के आँगन झाँकने वाले हम से ही क्यूँ बैर तुझे
कब तक तेरा रस्ता देखें सारी रात के जागे हम
Habib Jalib
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हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम
शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ
लुटेरों के लिए सोती हैं आँखें
नींद को लोग मौत कहते हैं
हमारी साँसें मिली हैं गिन के
घर घर आपस में दुश्मनी भी है
बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पास
जहाँ शीशा है पत्थर जागते हैं
काग़ज़ की नाव हूँ जिसे तिनका डुबो सके
रोज़ ओ शब बेच दिए हैं मैं ने
शीशे शीशे को पैवस्त-ए-जाँ मत करो