नींद को लोग मौत कहते हैं
ख़्वाब का नाम ज़िंदगी भी है
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घर घर आपस में दुश्मनी भी है
हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम
लुटेरों के लिए सोती हैं आँखें
शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ
शीशे शीशे को पैवस्त-ए-जाँ मत करो
लहर से लहर का नाता क्या है
ये किस करनी का फल होगा कैसी रुत में जागे हम
हमारी साँसें मिली हैं गिन के
काग़ज़ की नाव हूँ जिसे तिनका डुबो सके