बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पास
इतना तो है कि आप का दामन भिगो सके
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रोज़ ओ शब बेच दिए हैं मैं ने
हमारी साँसें मिली हैं गिन के
हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम
लुटेरों के लिए सोती हैं आँखें
घर घर आपस में दुश्मनी भी है
लहर से लहर का नाता क्या है
जहाँ शीशा है पत्थर जागते हैं
शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ
काग़ज़ की नाव हूँ जिसे तिनका डुबो सके
ये किस करनी का फल होगा कैसी रुत में जागे हम