क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो
मतलब ये है कि बात न हो और कलाम हो
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कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
एक दिल है एक हसरत एक हम हैं एक तुम
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी
हम अपनी बे-क़रारी-ए-दिल से हैं बे-क़रार
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना
यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती