नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम
मजबूर हैं कि लड़ नहीं सकते ख़ुदा से हम
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कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
एक दिल है एक हसरत एक हम हैं एक तुम
हम अपनी बे-क़रारी-ए-दिल से हैं बे-क़रार
तुम्हारी लन-तरानी के करिश्मे देखे-भाले हैं
क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता
मुतमइन अपने यक़ीं पर अगर इंसाँ हो जाए
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
दिल झुका माइल तबीअत हो गई
शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल