मेरा हाल-ए-ज़ार तो देखा मगर
ये न पूछा क्यूँ ये हालत हो गई
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कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
साक़ी-ओ-वाइ'ज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से
हम अपनी बे-क़रारी-ए-दिल से हैं बे-क़रार
रोक ले ऐ ज़ब्त जो आँसू के चश्म-ए-तर में है
संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं
क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता
चाहिए इश्क़ में इस तरह फ़ना हो जाना
किसी को भेज के ख़त हाए ये कैसा अज़ाब आया
नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम
बाहम जो हुस्न ओ इश्क़ में याराना हो गया