कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
बेकसी का क़ब्र पर मातम रहा
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
Allama Iqbal
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Mir Taqi Mir
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साक़ी-ओ-वाइ'ज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है
तुम्हारी लन-तरानी के करिश्मे देखे-भाले हैं
नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम
इक नज़र में दर्द खो देना दिल-ए-बीमार का
तमाम उम्र इसी रंज में तमाम हुई
नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारा
रोक ले ऐ ज़ब्त जो आँसू के चश्म-ए-तर में है
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
इश्क़ करते हैं तो अहल-ए-इश्क़ यूँ सौदा करें
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है