जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
ऐसे मिलने से तो बेहतर है जुदा हो जाना
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कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
तुम्हारी लन-तरानी के करिश्मे देखे-भाले हैं
साक़ी-ओ-वाइ'ज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम
मुतमइन अपने यक़ीं पर अगर इंसाँ हो जाए
क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
है वो जब दिल में तो कैसी जुस्तुजू