है वो जब दिल में तो कैसी जुस्तुजू
ढूँडने वालों की ग़फ़लत देखना
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हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही
क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता
एक दिल है एक हसरत एक हम हैं एक तुम
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
क्या ज़रूरत बे-ज़रूरत देखना
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारा
क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो
हालत दिल-ए-बेताब की देखी नहीं जाती
इश्क़ रुस्वा-कुन-ए-आलम वो है 'अहसन' जिस से