हालत दिल-ए-बेताब की देखी नहीं जाती
बेहतर है कि हो जाए ये पैवंद ज़मीं का
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तुम्हारी लन-तरानी के करिश्मे देखे-भाले हैं
एक दिल है एक हसरत एक हम हैं एक तुम
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
है वो जब दिल में तो कैसी जुस्तुजू
सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में
रोक ले ऐ ज़ब्त जो आँसू के चश्म-ए-तर में है
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी
क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो