मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है

मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है

ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है

फ़ुग़ाँ तो इश्क़ की इक मश्क़-ए-इब्तिदाई है

अभी तो और बढ़ेगी ये लय अभी क्या है

तमाम उम्र इसी रंज में तमाम हुई

कभी ये तुम ने न पूछा तिरी ख़ुशी क्या है

तुम अपने हो तो नहीं ग़म किसी मुख़ालिफ़ का

ज़माना क्या है फ़लक क्या है मुद्दई क्या है

सलाह-ए-कार बनाया है मस्लहत से उसे

वगर्ना नासेह-ए-नादाँ की दोस्ती क्या है

दिलों को खींच रही है किसी की मस्त निगाह

ये दिलकशी है तो फिर उज़्र-ए-मय-कशी क्या है

मज़ाक़ इश्क़ को समझोगे यूँ न तुम नासेह

लगा के दिल कहीं देखो ये दिल-लगी क्या है

वो रात दिन नहीं मिलते तो ज़िद न कर 'अहसन'

कभी कभी की मुलाक़ात भी बुरी क्या है

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