ख़ौफ़-ए-जाँ आस-पास रहता है
ख़ौफ़-ए-जाँ आस-पास रहता है
दिल यूँ ही कब उदास रहता है
देख कर अब लहू की अर्ज़ानी
हर कोई बद-हवास रहता है
सारे इंसाँ बिछड़ गए तो क्या
मेरा ग़म मेरे पास रहता है
जब से दिल को दिए हैं उस ने ज़ख़्म
कर्ब-ओ-ग़म आस-पास रहता है
आदमी जा बसेगा सूरज पर
ऐसा भी क्या क़यास रहता है
ख़ौफ़-ए-दरिया उसे नहीं होता
जो समुंदर-शनास रहता है
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