अजीब कर्ब सा है ज़िंदगी के चेहरे पर
अजीब कर्ब सा है ज़िंदगी के चेहरे पर
अँधेरा जैसे किसी रौशनी के चेहरे पर
यक़ीन कैसे करूँ मैं तुम्हारी बातों का
कि क़तरे अश्क के हैं शो'लगी के चेहरे पर
छुपा मिला मुझे ग़म की सियाह रातों में
जिसे मैं ढूँड रहा हूँ ख़ुशी के चेहरे पर
ज़माने-भर में हुए हादसे जो रोज़-ओ-शब
नुमायाँ हैं वो मिरी शाइ'री के चेहरे पर
जो इक ख़ुलूस था नापैद हो गया 'अहसन'
ग़ुबार-ए-बुग़्ज़ है अब दोस्ती के चेहरे पर
(1423) Peoples Rate This