नई हद-बंदियाँ होने को हैं आईन-ए-गुलशन में
नई हद-बंदियाँ होने को हैं आईन-ए-गुलशन में
कहो बुलबुल से अब अंडे न रक्खे आशियाने में
पचहत्तर लाख इक बे-कार मद में सर्फ़ कर देंगे
रेआया के लिए कौड़ी नहीं जिन के ख़ज़ाने में
जो अर्ज़ां है तो है उन की मता-ए-आबरू वर्ना
ज़रा सी चीज़ भी बेहद गिराँ है इस ज़माने में
जफ़ा-ओ-ज़ुल्म नसब-उल-ऐन होगा जिस हुकूमत का
यक़ीनन ख़ाक हो जाएगी वो थोड़े ज़माने में
वो इक रोटी जो हम को बरहमन मुश्किल से देता है
हज़ारों बुत हुआ करते हैं उस के दाने दाने में
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