नगर नगर में नई बस्तियाँ बसाई गईं
हज़ार चाहा मगर फिर भी अपना घर न बना
Anwar Masood
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
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ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया
इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा है
महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं
है मेरा चेहरा सैकड़ों चेहरों का आईना
न जाने कितने मराहिल के ब'अद पाया था
मिला जो धूप का सहरा बदन शजर न बना
वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या
इक मैं हूँ कि लहरों की तरह चैन नहीं है
जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे