इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा है
उस से मिलना है उम्र भर जैसे
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(746) Peoples Rate This
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया
आँधियों की ज़द में है मेरा वजूद
हर क़दम पर मेरे अरमानों का ख़ूँ
वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है
एहसास की मंज़िल से गुज़र जाएगा आख़िर
नगर नगर में नई बस्तियाँ बसाई गईं
महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं
न जाने कितने मराहिल के ब'अद पाया था
इक मैं हूँ कि लहरों की तरह चैन नहीं है
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या