आँधियों की ज़द में है मेरा वजूद
और मैं दीवार की तस्वीर हूँ
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नगर नगर में नई बस्तियाँ बसाई गईं
इक मैं हूँ कि लहरों की तरह चैन नहीं है
ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया
मुझ को मिरे वजूद से कोई निकाल दे
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या
इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा है
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
एहसास की मंज़िल से गुज़र जाएगा आख़िर
महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं
है मेरा चेहरा सैकड़ों चेहरों का आईना