ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया

ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया

मुसाफ़िरों को हवा ने पुकारने न दिया

तुझे भी दे न सके चैन वो गुलाब के फूल

मुझे भी इज़्न-ए-तबस्सुम बहार ने न दिया

न जाने कितने मराहिल के ब'अद पाया था

वो एक लम्हा जो तू ने गुज़ारने न दिया

कहाँ गए वो जो आबाद थे ख़राबे में

पता किसी का दिल-ए-बे-क़रार ने न दिया

मैं आप-अपने लिए दुश्मनों से बढ़ कर था

'ज़िया' ये दिल था मिरा जिस ने हारने न दिया

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