Heart Broken Poetry of Ahmad Ziya
नाम | अहमद ज़िया |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Ziya |
न जाने कितने मराहिल के ब'अद पाया था
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया
वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या
मिला जो धूप का सहरा बदन शजर न बना
महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं
जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ