अहमद ज़िया कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद ज़िया
नाम | अहमद ज़िया |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Ziya |
नगर नगर में नई बस्तियाँ बसाई गईं
न जाने कितने मराहिल के ब'अद पाया था
मुझ को मिरे वजूद से कोई निकाल दे
इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा है
है मेरा चेहरा सैकड़ों चेहरों का आईना
इक मैं हूँ कि लहरों की तरह चैन नहीं है
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
आँधियों की ज़द में है मेरा वजूद
ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया
वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या
मिला जो धूप का सहरा बदन शजर न बना
महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं
जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे
हर क़दम पर मेरे अरमानों का ख़ूँ
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ
एहसास की मंज़िल से गुज़र जाएगा आख़िर