उन से मेरी बात न पूछ
उन से मेरी अन-बन है
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और क्या मेरे लिए अरसा-ए-महशर होगा
ज़हर को मय न कहूँ मय को गवारा न कहूँ
ये तेरा ख़याल है कि तू है
पाताल ज़मीन आसमान
उम्र का आख़िरी दिन
यूँ ज़माने में मिरा जिस्म बिखर जाएगा
म्यूजियम
दिन हुआ कट कर गिरा मैं रौशनी की धार से
वो फूल जो मुस्कुरा रहा है
जो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते
क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र'