कौन डूबेगा किसे पार उतरना है 'ज़फ़र'
फ़ैसला वक़्त के दरिया में उतर कर होगा
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फूल की रंगत मैं ने देखी दर्द की रंगत देखे कौन
दिन हुआ कट कर गिरा मैं रौशनी की धार से
उम्र का आख़िरी दिन
उस ने तोड़ा जहाँ कोई पैमाँ
जो रेज़ा रेज़ा नहीं दिल उसे नहीं कहते
ज़हर को मय न कहूँ मय को गवारा न कहूँ
क्या पता किस जुर्म की किस को सज़ा देता हूँ मैं
काएनात-ए-ज़ात का मुसाफ़िर
जंगल का सन्नाटा मेरा दुश्मन है
वो फूल जो मुस्कुरा रहा है
आसमाँ की आँख सूरज चाँद बीनाई भी है