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ये तेरा ख़याल है कि तू है - अहमद ज़फ़र कविता - Darsaal

ये तेरा ख़याल है कि तू है

ये तेरा ख़याल है कि तू है

जो कुछ भी है मेरी आरज़ू है

दिल पहलू में जल रहा है जैसे

ये कैसी बहार-ए-रंग-ओ-बू है

तक़दीर में शब लिखी गई थी

कहने को ये ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू है

वो दस्त-ए-ख़िज़ाँ से बच गया है

जिस फूल में रंग है न बू है

पत्थर को तराश कर भी देखो

ये फ़न भी ख़ुदा की जुस्तुजू है

परदेस है शहर शहर मेरा

अग़्यार की जिस में आबरू है

तक़्दीस के सर में ख़ाक देखी

तहज़ीब के हाथ में सुबू है

मैं जीने से तंग आ गया हूँ

ऐ मौत सुबूत दे कि तू है

देखो तो 'ज़फ़र' कहाँ है यारो

दीवाने का ज़िक्र कू-ब-कू है

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